बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छता बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छतासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छता
ट्रेस तत्त्व
(Trace Elements)
शरीर एवं स्वास्थ्य के लिए आवश्यक ट्रेस तत्त्व निम्न प्रकार हैं-
1. लौह खनिज - यद्यपि लोहे की हमारे शरीर को अत्यन्त कम मात्रा में जरूरत होती है, परन्तु इसकी उपस्थिति अत्यन्त अनिवार्य होती है। एक सामान्य, स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में लगभग 4 ग्राम लोहा रहता है। शरीर में पाए जाने वाले लोहे का 70% भाग रक्त के हीमोग्लोबिन में, 4% मांसपेशियों में, 25% अस्थि मज्जा, यकृत, वृक्कों व प्लीहा में तथा 1% रक्त प्लाज्मा तथा एन्जाइम में उपस्थित रहता है।
लोहे की प्राप्ति के प्रमुख स्रोत- अण्डा, मांस, यकृत, सूखे फल जैसे किशमिश, खुबानी, आलू बुखारा आदि लोहे की प्राप्ति के अच्छे साधन हैं। गहरे रंग की पत्तेदार, विभिन्न प्रकार की सब्जियों में भी लोहे की ज्यादा मात्रा होती है। अण्डे के पीले भाग में भी लौह तत्त्व प्रचुर मात्रा में रहता है, जबकि अण्डे के सफेद भाग में इसकी कमी होती है। दालों और नट्स में भी लोहा पर्याप्त मात्रा में उपस्थित रहता है। ताजे फल व अन्य सब्जियाँ भी लोहे के थोड़े-बहुत अंश की पूर्ति करते हैं, किन्तु इन्हें लौह तत्त्व की प्राप्ति का अच्छा साधन नहीं माना जाता। गहरे रंग के मीठे पदार्थों; जैसे गुड़, शक्कर, खजूर, मुनक्का आदि में लोहे की पर्याप्त मात्रा मिलती है। साबुत अनाजों में भी इसकी अच्छी मात्रा पायी जाती है। दूध व पनीर में लोहे की मात्रा नगण्य ही होती है। शहद में भी लोहे की मात्रा रहती है।
लौह तत्त्व के कार्य
(i) ऊतकों के एन्जाइम में भी कुछ लोहे की मात्रा रहती है, जो प्रोटीन, वसा व कार्बोहाइड्रेट के चयापचय में सहायक होती है।
(ii) रक्त निर्माण का कार्य — रक्त कणिकाओं में हीमोग्लोबिन एक जरूरी भाग है, जो लोहा (Haem) व ग्लोबिन (Globin) नामक प्रोटीन के संयोजन से बनता है। शरीर में लोहे की अधिकांश मात्रा इसी रूप में उपस्थित रहती है।
(iii) लोहे के अन्य कार्य-
(क) प्रतिरक्षी कोशिकाओं का निर्माण।
(ख) प्यूरीन्स का संश्लेषण जो कि न्यूक्लिक अम्ल का मुख्य भाग है।
2. आयोडीन — आयोडीन भी शरीर के लिए जरूरी खनिज तत्त्वों में से एक है। आयोडीन थायरॉइड ग्रन्थि के हॉर्मोन थायरॉक्सिन का मुख्य घटक है। थायरॉइड ग्रन्थि में इसकी कुल मात्रा लगभग 10 मिलीग्राम होती है। एक प्रौढ़ व्यक्ति के शरीर में 20-50 मिग्रा तक आयोडीन की उपस्थिति पायी जाती है।
आयोडीन एक अत्यन्त जरूरी खनिज तत्त्व है, जो शरीर में बहुत ही अल्प मात्रा में गया जाता है। इसकी मात्रा शरीर के भार की 0.0004% भाग अथवा शरीर में पाए जाने वाले लौह लत्रण का 100वाँ भाग होती है। यह शरीर की प्रत्येक कोशिका में पायी जाती है तथा 70-80% (10 ग्राम) आयोडीन शरीर के एक ऊतक थायरॉइड ग्रन्थि में पायी जाती है।
शरीर में आयोडीन की कमी के परिणाम —शरीर में आयोडीन की कमी के परिणामस्वरूप मुख्य रूप से निम्नलिखित रोग हो जाते हैं-
(i) मिक्सीडीमा— जो वयस्क अपने विकास काल में थायरॉक्सिन की कमी से पीड़ित रहे हों वे मिक्सीडिमा रोग की चपेट में आ जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों के बाल रूखे व कड़े हो जाते हैं तथा त्वचा शुष्क, मोटी व पीली पड़ जाती है। इन व्यक्तियों की आवाज में भारीपन आ जाता है तथा इनमें संवेदनशून्यता व आलस्य बढ़ता जाता है।
(ii) क्रेटिनिज्म - गर्भावस्था में महिलाओं द्वारा आयोडीन की कमी वाला आहार लेने से प्रायः शिशुओं में यह रोग लग जाता है। बच्चे की शारीरिक व मानसिक दोनों प्रकार की वृद्धि रुक जाती है, जिसके परिणामस्वरूप बच्चा नाटा रह जाता है। बच्चे का मानसिक सन्तुलन भी अपरिपक्व रहता है। उसकी त्वचा मोटी व शुष्क रहती है, पेट का आकार बढ़ जाता है तथा चयापचय की दर घट जाती है। उसकी मांसपेशियाँ कमजोर व मुलायम हो जाती हैं तथा बाल कड़े व शुष्क हो जाते हैं। यदि ऐसे बच्चे का उपचार जन्म के तुरन्त बाद करा लिया जाए तो ये लक्षण ठीक हो सकते हैं लेकिन यदि पूर्व बाल्यकाल तक उपचार न किया जाए तो उसके मानसिक व शारीरिक लक्षण स्थायी हो जाते हैं। बड़े होने पर भी बच्चे की लम्बाई 7-8 वर्ष के बालक के समान रहती है। उनके जनन अंगों की वृद्धि भी रुक जाती है तथा मानसिक वृद्धि पर गम्भीर रूप से प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जीभ फूलने लगती है, त्वचा भी मोटी व फूली हुई हो जाती है। ऐसा अन्तः त्वचीय ऊतकों में जिलेटिन समान द्रव्य के जमा होने से होता है। बाल सूखे, कड़े व पतले हो जाते हैं।
(iii) गलगण्ड अथवा घेंघा - यह रोग थायरॉइड ग्रन्थि के आकार में बढ़ने पर गले में सूजन के रूप में परिलक्षित होता है। आयोडीन की मात्रा पूरी करने के लिए इस ग्रन्थि का आकार बढ़ने लगता है, जो कि थायरॉक्सिन निर्माण में जरूरी है। जब शरीर में आयोडीन की मात्रा सामान्य भार से 2% कम हो जाती है, तब ग्रन्थि आकार में बढ़ने लगती है। कोशिकाएँ संख्या व आकार दोनों रूप में बढ़ने लगती हैं।
3. फ्लोरीन - फ्लोरीन (F), सबसे प्रतिक्रियाशाली रासायनिक तत्त्व और हैलोजन तत्त्वों का सबसे हल्का सदस्य है। यह एक अधातु तत्त्व है। यह हल्का हरा पीला होता है।
पानी, हवा, पौधों और जानवरों में प्राकृतिक रूप से थोड़ी मात्रा में क्लोरीन मौजूद होता है। परिणामस्वरूप मनुष्य भोजन और पीने के पानी और साँस लेने वाली हवा को माध्यम से फ्लोरीन के सम्पर्क में आते हैं। फ्लोरीन किसी भी प्रकार के गोजन में अपेक्षाकृत कम मात्रा में पाया जा सकता है। चाय और शंख में बड़ी मात्रा में फ्लोरीन पाया जाता है।
4. जस्ता – मानव शरीर के लिए उपयोगी खनिज पदार्थों में जिंक (Zinc) का भी अपना स्थान है। जिंक की बहुत कम मात्रा जानवरों के यकृत, अस्थियों तथा रक्त में पायी जाती है। जिंक नलिकाविहीन ग्रन्थियों के स्राव की क्रियाशीलता के लिए अत्यन्त जरूरी है। विशेषकर क्लोम ग्रन्थि से निकलने वाले इन्सुलिन को बनाने में जिंक सहायक होता है। जस्ता शरीर में अस्थियों, दाँतों तथा पक्वाशय ग्रन्थि में होता है। रक्त का सीरम या रक्त
प्लाज्मा में भी यह पाया जाता है।
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